जैसे हम अपने धर्म को आदर देते हैं ऐसे ही दूसरे धर्म को दें - मात्र सहिष्णुता पर्याप्त नहीं है। 27.11.1944
सच्चा सुख बाहर से नहीं मिलता है, अंदर से ही मिलता है। 09.12.1944
विकारी विचार भी बीमारी की निषानी है। इसलिए हम सब विकारी विचार से बचते रहें। 27.12.1944
अनासक्त कार्य शक्तिप्रद है, क्योंकि अनासक्त कार्य भगवान् भक्ति है। 19.1.1945
यह कितनी गलत बात है कि हम मैले रहें और दूसरों को साफ रहने की सलाह दें? 12.2.1945
झूठ आत्मा को खा जाता है, सत्य आत्मा को पुष्ट करता है। 2.7.1945
सत्य वचन की शक्ति वहां तक जाती है कि मनुष्य को सवार्थ से परमार्थ में ले जाती है। 31.7.1945
मनुष्य की सच्ची पहचान उनके हार्दिक विनय से होती है। 29.9.1945
श्रद्धा में निराषा को कोई स्थान नहीं है। 3.10.1945
अवगुण अंधेरे में फलता है प्रकाष में गैब (गायब) हो जाता है। 21.10.1945
संपूर्ण अहिंसा में द्वेष का संपूर्ण अभाव होता है। 23.12.1945
जैसे बीज को फल देने में अपनी मुद्दत चाहिए, ऐसे हर कार्य के लिये है। मुंबईः 19.2.1946
जो जीवन के सुर में चलता है, उसे कभी थकान नहीं होगा। 8.3.1946
उमदा ख्याल खुषबू जैसा है। उरुलिः 26.3.1946
शुद्ध विचार की शक्ति वचन से बहुत अधिक है। नई दिल्लीः 26.5.1946
धैर्य से बहुत काम बनते हैं, अधैर्य से बिगड़ते है। सेवाग्रामः सामः 12.8.1946
धर्म के लिए मरना अच्छा है। धर्मांधता के लिये न जीना, न मरना। नई दिल्लीः शुक्र: 26.5.1946
सच्चा कार्य कभी निकम्मा नहीं होता, सच्चा वचन अन्त में कभी अप्रिय नहीं होता। 23.1.1945
जो मनुष्य किसी एक चीज पर एकनिष्ठा से काम करता है, वह आखिर सब चीज करने की शक्ति हासिल करेगा। 8.12.1944
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Archive Date:
Tuesday, August 4, 2015 - 16:45